कॉर्बेट नेशनल पार्क में विलुप्त प्राय हो चुके बेहद खूंखार जंगली सोन कुत्ते की तरह कुछ वन्यजीव नजर आए हैं। पार्क प्रशासन इनकी खोज के लिए बड़े स्तर पर शोध शुरू करने जा रहा है। साल 1978 में वन विभाग के रिकॉर्ड में सोन कुत्तों के पार्क के जंगल में होने का जिक्र है। अफसरों को शक है कि पार्क में आज भी जंगली सोन कुत्ते हो सकते हैं। गौरतलब है कि स्वभाव से बेहद खूंखार इन कुत्तों के वन्यजीवों, मानवों पर हमले के चलते सरकार ने इन्हें मारने के आदेश दिए थे, तब से यह उत्तराखंड के जंगलों से लगभग विलुप्त हैं।

कॉर्बेट पार्क समेत उत्तराखंड के जंगलों में सोन कुत्ते 1978 तक बड़ी मात्रा में थे। खासकर कॉर्बेट में उनके झुंड नजर आते थे। वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी ने बताया कि सोन कुत्ते इतने खूंखार थे कि मवेशियों के अलावा मानवों पर हमला करने लगे थे। ऐसी घटनाएं देखते हुए सरकार ने इन्हें मारने वालों को इनाम तक देने का ऐलान कर दिया। तब से यह जंगलों से लगभग विलुप्त हो गए और लंबे समय तक कॉर्बेट में भी नहीं दिखे। अब कॉर्बेट निदेशक राहुल ने बताया कि ढेला समेत पार्क में कुछ जगहों पर सोन कुत्ते की तरह वन्यजीव दिखे हैं। हालांकि दूरी अधिक होने से इनकी पुष्टि नहीं हो सकी है, ऐसे में इनकी खोज के लिए बड़े स्तर पर शोध शुरू होने जा रहा है। इसके तहत जंगल में कैमरे लगाकर सोन कुत्तों का पता लगाया जाएगा। ट्रैप कैमरों के जरिए इनकी पहचान, संख्या और आदत का पता लगाया जाएगा। पार्क में इनके होने की पूरी संभावना है।

जानिए ये भी
सोनकुत्ता या वनजुक्कुर कुत्तों के कुल का जंगली प्राणी है, जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में मिलता है। यह अपनी प्रजाति का इकलौता जीवित प्राणी है, जो कुत्तों से दंतावली और स्तनाग्रों में अलग है। अब यह अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित है। इनके आवासीय क्षेत्र, शिकार की कमी, दूसरे शिकारियों से स्पर्धा और शायद घरेलू या अन्य जंगली कुत्तों से बीमारी फैलने के कारण इनकी संख्या तेजी से घटी है।

क्या है खूबी
सोन कुत्ते बड़े झुंडों में रहते हैं और अक्सर शिकार के लिए छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं। अफ्रीकी जंगली कुत्तों की तरह यह शिकार के बाद पहले शावकों को शिकार खाने देते हैं।

कितने खतरनाक
सोन कुत्ते को ढोल भी कहा जाता है, आमतौर पर यह मनुष्यों से डरते हैं, लेकिन इनके झुंड मानव बच्चे, जंगली शूकर, जंगली भैंसे और यहां तक कि बाघ पर भी आक्रमण से नहीं हिचकिचाते हैं। यह फिलहाल मध्यप्रदेश, झारखंड आदि के जंगलों में हैं।

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