उत्तराखंड: बाजार में मौजूद 56 फीसद सैनिटाइजर कारगर नहीं, जानें- किस जिले में कितने नमूने फेल

 

देहरादून स्थित उत्तरांचल प्रेस क्लब मे स्पेक्स संस्था के संस्थापक डॉ.. बृज मोहन शर्मा ने दी। उन्होने बताया कि कोरोना महामारी से बचने का मूल मंत्र भारत सरकार एवम अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी संस्थाओं ने दिन में बार-बार एलकोहॉल वाले सेनेटाइजर से हाथ साफ करने संभव बताया। इस कारण बाजार में इसकी मांग बढ़ गई और कुछ लोगो ने इसमें मानकों की अनदेखी करके सेनेटाइजर बाजार में बेचने शुरू कर दिए। उन्होने बताया कि इस प्रक्रिया को समझने के उद्देश्य से स्पेक्स ने अपने साथियो के साथ मिलकर राज्य के प्रत्येक जिले में एक अध्ययन 3 मई से 5 जुलाई तक किया गया। डॉ. शर्मा के अनुसार, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्रदत्त की गई अपनी प्रयोगशाला में स्पेक्स ने नमूनों का परीक्षण किया। उन्होंने बताया कि इन नमूनों में एलकोहॉल परसेंटेज के साथ साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड, मेथेनॉल और रंगो की गुणवत्ता का परिक्षण किया गया।

स्पेक्स संस्थापक ने बताया कि इस अध्ययन में जो परिणाम प्राप्त हुए, वे चौकाने वाले थे। उन्होने बताया कि लगभग 56 प्रतिशत सेनेटाइजर में एलकोहॉल मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए। यानि 1050 नमूनों में 578 नमूने फेल पाए गए। 08 नमूनों में मेथेनॉल पाया गया। लगभग 112 नमूनों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रतिशत मात्रा मानकों से अधिक पाई गई। लगभग 278 नमूनों में टॉक्सिक रंग पाए गए। उन्होंने बताया कि अल्कोहल की प्रतिशत मात्रा 60-80 प्रतिशत होनी चाहिए। हाइड्रोजन पेरोक्साइड की मात्रा 0.5 परसेंट से ज्यादा न हो। मेथनॉल नहीं होना चाहिए। उन्होने बताया कि अल्मोड़ा जिले में 56 प्रतिशत, बागेश्वर में 48 प्रतिशत, चम्पावत में 64 प्रतिशत, पिथौरागढ़ में 49 प्रतिशत, उधमसिंहनगर 56 प्रतिशत, हरिद्वार 52 प्रतिशत, देहरादून 48 प्रतिशत, पौड़ी में 54 प्रतिशत, टिहरी में 58 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 60 प्रतिशत, चमोली में 64 प्रतिशत, उत्तरकाशी में 52 प्रतिशत, नैनीताल में 56 प्रतिशत एलकोहॉल मानकों के अनुरूप नहीं था।

डॉ. शर्मा ने आशंका  कि सेनेटाइजर में एलकोहॉल की प्रर्याप्त मात्रा नहीं होने के कारण भी उत्तराखंड में कोरोना के मरीजों की संख्या शायद बढ़ी हो। उन्होंने बताया कि कृत्रिम रंग त्वचा पर विषाक्त पदार्थ छोड़ते हैं और आपकी संवेदनशीलता और जलन के जोखिम को बहुत बढ़ा देते हैं। यह रसायन आपके शरीर में अवशोषित होकर अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे आपके छिद्रों को भी अवरुद्ध कर सकते हैं, जिससे मुंहासों का अधिक खतरा होता है। उन्होंने बताया कि हाइड्रोजन पेरोक्साइड भी लिपिड प्रति ऑक्सीकरण के माध्यम से एक सीधा साइटोटोक्सिक प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा कई अन्य दुष्परिणाम उन्होंने गिनाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here