Saturday, February 22News That Matters

दुःखद माँ की गोद से छीन कर तेंदुआ उसके जिगर के टुकड़े को ले गया , हमारा दिल रोता है बार बार

कांप जाता है पहाड़ इन दर्दनाक 
घटना को देख कर सुनकर
पहाड़वासियों के दिल को चीर देती है ये दुःखद ख़बर है

जो सुन भी ले उसका मानो कलेजा फट जाए फिर सोचो उस परिवार पर क्या बीत रही होगी
उस माँ पर क्या बीत रही होगी
ये सोचकर
दिल रो जाता है ।


हमारे उत्तराखंड के पहाड़ी विधानसभा अल्मोड़ा के डुंगरी उडल गांव में कल सोमवार देर शाम तेंदुआ ढाई साल के मासूम को मां की गोद से उठाकर ले गया। उफ़ सुनकर ही ( सहम गया हूँ ),
फिर बच्चे की तलाश में तेंदुए के पीछे गए ग्रामीणों को घर से लगभग तीन सौ मीटर दूर जाकर जंगल में मासूम का शव उन्हे मिला
बच्चे की मौत के बाद
पूरे परिवार में कोहराम मचा हुवा है
जानकरीं आई है कि भैंसियाछाना ब्लॉक के पेटशाल उडल गांव में ढाई साल का हर्षित मेहरा पुत्र देवेंद्र मेहरा को उसकी मां हेमा मेहरा घर के आंगन में बैठ कर दूध पिला रही थी। 
ख़बर है कि इस दौरान घात लगाए बैठे तेंदुए ने झपट्टा मारकर बच्चे को मां की गोद से उठा लिया और जंगल की ओर ले गया।


फिर मां की चीख सुनकर पड़ोसी और अन्य ग्रामीण वहां पंहुचे और तेंदुए के पीछे जंगल की ओर दौड़ पड़े। घर से  लगभग तीन सौ मीटर दूर झाड़ियों में उन्हें तेंदुए की आवाज सुनाई दी। ग्रामीणों ने झाड़ियों में पत्थर फेंके तो तेंदुआ बच्चे को झाड़ी में छोड़ कर भाग निकला। पर तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी। सूचना पर वन विभाग और राजस्व पुलिस की टीमें भी मौके पर पहुंची थी
जानकरीं मिली है कि ढाई साल का हर्षित अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।
ओर लगभग अभी 15 दिन पहले ही हर्षित की छोटी बहन का नामकरण हुआ था। इनके पिता बंगलूरू में नौकरी करते थे। मार्च में पत्नी के गर्भवती होने पर वह अपने बच्चों के साथ गांव आ गए थे। ओर बेटी के जन्म के बीच लॉकडाउन के कारण परिवार समेत वह गांव में ही रह रहे थे। फिर सोमवार को हुई दर्दनाक घटना के बाद परिवार में मातम छा रखा है और मृतक की माता हेमा के हाल के बारे मैं तो हम से बोला भी नही जा रहा है वो माँ जिसके हाथ से उसके लाडले को बाघ छीन कर ले गया
उफ़ क्या गुजर रही होगी उस माँ पर  में लिखते हुए रो रहा हूँ
तो उस मा का हाल कैसे बया करू……।
जानकारी मिली है कि इससे पहले डुंगरी गांव में ही रमेश राम और पिछले साल अक्तूबर में पेटशाल से एक बुजुर्ग को तेंदुआ ने अपना निवाला उनको बनाया ओर अक्तूबर के महीने ही 7 दिन के भीतर गांव के ही विशन सिंह को तेंदुए ने मौत के घाट उतार दिया था।
तब उस समय भी ग्रामीणों ने शीघ्र ही तेंदुए को पकड़ने की मांग उठाई थी। विभाग ने पिंजरा लगाया भी लेकिन वो तेंदुआ हाथ नहीं आया था
पहाड़ी राज्य टीम की सभी सोच मैं डूबी हुई है
बड़ा दर्द है मेरे पहाड़ का
दुख दर्द का है मेरा पहाड़
आये दिन कभी बाघ, कभी हाथी
तो कभी भालू आजतक जानवरों की जान तो ले ही रहा था अब मानव के प्राण भी ले रहा है

अक्सर देखा है
इन दर्दनाक घटनाओं के बाद कोई धरने पर बैठता है तो कोई
बाघ या तेंदुवा को मारने की माग करता है
ओर कुछ समय बाद वन महकमे की परमिशन के बाद बाघ को मार भी दिया जाता है
तो कोई पकड़ मैं आता भी नही।
बोलता है पहाड़ी राज्य
बनकर पहाड़ की आवाज
की उत्तराखंड सरकार सिर्फ दुख प्रकट करने से क्या होगा ?
क्या मुवाज़ा देकर वापस आजयेगी मासूम की जान?,

उत्तराखंड सरकार आपकीं सारी बात अपनी जगह ठीक
पहाड़ो मैं वापस आने की बात भी ठीक
स्वरोजगर की योजनाएं ठीक
जो सुविधा है वो भी ठीक ओर जो नही है वो भी चलो ठीक हम पहाड़ियों को सब मंजूर है
पर साहब आपको इस ओर गम्भीरतापूर्वक सोचने की जरूरत है
कुछ ऐसे निर्णय लेने की जरूरत है जिससे
ये दुःखद घटनाये बंद हो सके
सरकार जानवरो को जंगल तक ही सीमित करना होगा ,
उनके भोजन की व्यवस्था जंगल मैं ही करनी होगी
तो हम भी सबको समझा रहे है ,गाँव के लोगो को भी समझना होगा , प्रधान को समझना होगा
विद्यायक को बोलना होगा
की घर के ,गाँव के आस पास चाहे कुछ भी हो जाये
समय समय पर झड़ियो को स्वयं ही काटना होगा ।
ताकि जानवरो को छुपने या बेठे रहने का स्थान ही ना मिले।
सरकार हर बार मुवाज़ा देने से ही काम नही चलता
कुछ ऐसा करो वो योजना बनाओ जिससे इस प्रकार की दुःखद घटनाये सुनाई ही ना दे।।

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