Tuesday, February 11News That Matters

पूर्व सीएम हरीश रावत ने लिखा कई नेताओं की कलई खोलता हुआ लेख, पढिए उत्तराखंड के 21साल के सफर पर क्या लिखा..

पूर्व सीएम हरीश रावत नेकई नेताओं की कलई खोलता हुआ लेख लिखा है उन्होंने उत्तराखंड के 21साल के राजनीतिक सफर पर मुख्यमंत्रियों और नेताओं के लिए बड़ी बात लिखी है। पढिए…

उन्होंने लिखा #FacebookPage के मेरे पूर्वांश लेख के अग्रांश को मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। पूर्वांश में मैंने माननीय #मुख्यमंत्री जी के सम्मुख क्या-क्या चुनौतियां हैं! #भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों के अंदर कितने गंभीर सवाल उत्तराखंड में खड़े कर दिये हैं, उनका उल्लेख किया था। क्योंकि मेरा मानना है बिना चुनौतियों की याद दिलाए मेरी शुभकामनाएं अधूरी होती हैं और अब मैं कुछ इस सारे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि की ओर आपको लेकर के चलना चाहता हूंँ।

इस घटनाक्रम के कुछ #नायक सन् 2000 में भी थे और कांग्रेस की जीत के बाद उनकी महत्वाकांक्षाएं परवान चढ़ी, उनमें से एकाद व्यक्तित्व अब हमारे बीच नहीं हैं। उन्हें जब लगा कि सामान्य स्थिति में पार्टी नेतृत्व #हरीश_रावत को ही मुख्यमंत्री चयनित करेगा तो उन्होंने एक नया पैंतरा चला, श्री #नारायण_दत्त_तिवारी जी के मन में एक लालसा पैदा कर दी, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने की। श्री तिवारी जी ने श्रीमती #सोनिया जी को अपनी इच्छा बताई। श्री तिवारी जी का बड़ा सम्मान पार्टी में था और वह सम्मान उनको मिला। पार्टी अध्यक्षा जी के निर्णय को मैंने और मेरे साथियों ने दिल पर पत्थर रखकर स्वीकार किया और 5 साल निर्वाद रूप से श्री तिवारी जी की सरकार चली।
2002 में जिस समय चुनाव के नतीजे आए, उत्तराखंड का #जनमानस हरीश रावत को अपना मुख्यमंत्री दिल से स्वीकार कर चुका था। मेरे साथियों ने ही नहीं, उत्तराखंड वासियों ने भी कांग्रेस के इस निर्णय को बहुत भारी मन से लिया। यदि आप 2007 के चुनाव के आगे-पीछे के #घटनाक्रम को देखेंगे तो जिस व्यक्ति ने 5 साल सरकार चलाई, वो मुख्यमंत्री के रूप में नेतृत्व करने के लिए 2007 के चुनाव में आगे नहीं आये। उन्होंने यहां तक की अपनी सीट पर भी कांग्रेस के लिए वोट नहीं मांगा, कांग्रेस अध्यक्षा द्वारा संबोधित की गई सभा में तिवारी ने सब कुछ कहा, मगर कांग्रेस को वोट देने की अपील नहीं की, परिणाम दिन के उजाले की तरीके से साफ था।

कांग्रेस #चुनाव हार गई और भाजपा जो उस समय तक राज्य के सभी जिलों में संगठित नहीं हो पाई थी, उन्हें अप्रत्यक्षित रूप से सरकार बनाने का अवसर मिल गया, इसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाकर गांव-गांव अपने संगठन को कांग्रेस के समानांतर खड़ा किया। यदि 2007 में कांग्रेस की फिर से सरकार बनती तो हो सकता है पार्टी #हरीश रावत को फिर मुख्यमंत्री की #बागडोर सौंप भी सकती थी और नहीं भी सौंप सकती थी, किसी नये व्यक्ति को भी अवसर मिल सकता था। यह भी निश्चित था कि 2007 की जीत के साथ कांग्रेस का मनोबल बुलंदियों पर होता और भाजपा में हताशा होती, क्योंकि मैंने दो बातों पर निरंतर फोकस रखा हुआ था। एक तो संगठनात्मक ढांचे को खड़ा करने और दूसरा #उत्तराखंडियत/गरीबीयत पर, उसका लाभ पार्टी को मिलना निश्चित था। लेकिन जब चेहरा आंखों से ओझल हो जाता है तो फिर लोग धीरे-धीरे पिछली बातों को भूल जाते हैं।

फिर 2012 आया, वर्ष 2012 में हमारे दोस्त जिनके हाथ में बागडोर थी, वो तो अपने क्षेत्रों में चुनाव का संचालन कर रहे थे। मगर राज्य भर में चुनाव का संचालन करने का काम हरीश रावत ने किया और बिना यह इच्छा व्यक्त किये कि मुझे भी कहीं से चुनाव लड़ना है या मेरे परिवार के किसी सदस्य को भी चुनाव लड़ना है। बल्कि यूथ कांग्रेस के देशभर में प्रत्येक अध्यक्ष को चुनाव लड़ाया गया और सारी योग्यताएं होते हुये भी मेरे पुत्र को वह सौभाग्य नहीं मिल पाया। मगर पार्टी बड़ी है, हमने उस सिद्धांत को माना और उसी सिद्धांत का परिणाम रहा कि मैं पार्टी के अंदर हमेशा राजनैतिक रूप से जिंदा रहा। #गुलाम_नबी जी ने दोनों बार के निर्णय के बाद अपनी टिप्पणी में कहा कि हरीश रावत 24 कैरेट के सोना हैं। दूसरी बार जब उन्होंने यह टिप्पणी की तो मुझे कहना पड़ा कि आजाद साहब 24 कैरेट के सोने में भी एकाद कैरेट तांबा मिलाना पड़ता है।

शायद मेरी यह गलती रही, इसलिए इस 24 कैरेट के सोने को आप लोगों ने इस काबिल नहीं समझा कि उसको मुख्यमंत्री पद दिया जाय। मेरे लंबे सार्वजनिक जीवन और संसदीय जीवन को एक तरफ रखकर के नये आये हुये व्यक्ति को दायित्व सौंपा। खैर पार्टी ने फिर से चुनौतीपूर्ण स्थितियों में मुझे मुख्यमंत्री बनाया, मैं पार्टी का बहुत आभारी हूंँ। फिर आज की कहानी के कुछ नायकों ने उस समय भी कुछ खटर-पटर खड़ी की। मैंने तब भी कहा कि और कुछ नहीं तो मुझसे एक बात सीखो कि अपने स्थान पर रहो, एक स्थान पर पड़ा हुआ पत्थर भी भारी हो जाता है। लेकिन कई लोग बहुत जल्दी में थे, एक व्यक्ति का मुझे बहुत दु:ख है, वैसे उनका दल-बदल सामान्य नहीं था, उसके पीछे एक पारिवारिक निर्णय था। लेकिन यदि वो कांग्रेस में रहते तो मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस एक दिन उनको अवश्य मुख्यमंत्री पद से नवाजती, क्योंकि कांग्रेस का स्वभाव व सिद्धांत, दोनों का लाभ उनको मिलता।

यूं मैंने कल मजाक में कह दिया खट्टे अंगूर, लेकिन कुछ लोगों के लिए वास्तव में अब अंगूर खट्टे हो गये हैं। कोई भी पार्टी उनको अपने साथ जोड़ने में हिचकिचायेगी और यहां एक सबक भाजपा के लिए भी है, “जिसकी जैसी करनी, उसकी वैसी भरनी”। #मोदी जी की लोकप्रियता का वेग बड़ा प्रचंड था। मैंने चुनाव के दौरान अंतिम 4 दिनों में श्री मोदी लहर का अनुभव किया, हवा में भी वो लहरें तैरती थी, मोदी-मोदी, मोदी की लहरें तो भाजपा ने सत्ता में आना ही था। मगर उन्होंने #उत्तराखंड के अंदर दल-बदल का कृत्य करवाया, आज उसी का परिणाम है कि उनको 5 साल पूरे होने में ये तीसरा मुख्यमंत्री देना पड़ा है और कुछ लोग चौथे मुख्यमंत्री की बात करने लग गये हैं।

भाजपा की सत्ता तो आई, मगर सत्ता एक दाग के साथ आई और सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट का निर्णय, ऐतिहासिक निर्णय भले ही मोदी जी की लोकप्रियता के आलोक में लोगों को नहीं दिखाई दिया। लेकिन मैं, श्री मोदी जी के स्वभाव को जानता हूँ, उनको कहीं न कहीं, वो दोनों #निर्णय जरूर चुभते होंगे और अब वो निर्णय उत्तराखंड की जनता को भी याद आ रहे होंगे। मैं समझता हूंँ, निर्णय अब राजनैतिक दलों के दायरे से अलग निकल गया है, अब जनता की अदालत में आ गया है और 2022 में उत्तराखंड की #जनता इस सारे घटनाक्रम पर विहंगम विवेचन कर एक ऐतिहासिक निर्णय लेगी।
“#जय_उत्तराखंड- #जय_उत्तराखंडियत “

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