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उत्तराखंडियत  पहाड़ का ही दूसरा नाम है हीरासिंह राणा:   डॉक्टर अजय   ढोण्डियाल  की कलम से

उत्तराखंडियत पहाड़ का ही दूसरा नाम है हीरासिंह राणा: डॉक्टर अजय   ढोण्डियाल  की कलम से

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  हीरासिंह राणा को परिभाषित करना असंभव है। हर शब्द अपूर्ण है। कुछ भी पर्याय नहीं। है तो बस, उत्तराखंडियत। पहाड़ का ही दूसरा नाम है हीरासिंह राणा। 15 साल में जो कलम उठाई तो जैसे पहाड़ बोलने लगा। 60 के दशक की शुरुआत में इस कलम से पहले शब्द फूटे- आलिली बाकरी लिली...पहाड़ के ग्वाले के रूप में दूसरे के खेत में (परदेस) में उज्याड़ खाने जा रही (पलायन) बकरी को उनकी कलम ने धाद लगानी शुरू की तो ये सिलसिला मई 2020 तक नहीं थमा। इसी दशक में इस कलम ने 'मैं ले छौं ब्यचो एक, मनखौं पड़्यों मैं...ठाड़ी रौं न्यरा न्यैरी हजूरों की स्यो मैं' पंक्ति के जरिए खुद की बोली लगाई। लेकिन उसका खरीदार भला कहां मिलता। फक्कड़ की यायावरी शुरू हुई। वो आंखें बस पहाड़ को ही देखती थीं और उनमें सिर्फ पहाड़ बसा था। कलम की धार मुंबई तक ले गई लेकिन चकाचौंध रास न आई। हुड़के ने अपनी घमक गहरी करने के लिए वापस बुला लिया। अचकाल ...