गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति के विकास के लिए आगे आए
त्रिवेंद्र सरकार

गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति विभाग ने शुरू की गढ़वाली क्विज

गढ़वाली भाषा दिवस पर
श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय की पहल

विचार

देश-विदेश में गढ़वाली पढ़ने वालों के लिए हों ऑनलाइन क्लासेज ।

गढ़वाली भाषा के प्रसार के लिए शुरू की जाएं ऑनलाइन कार्यशालाएं

देहरादून।

गढ़वाली भाषा के विकास को लेकर श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से ऑनलाइन परिचर्चा की गई। जिसमें गढ़वाली भाषा को आगे बढ़ाने को लेकर जनसहभागिता पर जोर दिया गया। साथ ही वक्ताओं ने कहा कि सरकार को गढ़वाली भाषा के विकास के लिए आगे आना चाहिए।

स्कूल ऑफ ह्युमैनिटीज एवं सोशियल साइंसेज की डीन डॉ. गीता रावत ने कहा कि श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज के प्रयासों से विश्वविद्यालय ने तो स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यक्रम शुरू कर दिया है।


यह देश एवं दुनिया का गढ़वाली भाषा के लिए पहला प्रयास है।
अब इसको आगे बढ़ाने का काम प्रदेश के हर व्यक्ति का है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार भाषा के इस काम में हाथ बढ़ाए तो आज के दिन यह उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों का सबसे बड़ा सम्मान होगा।


साथ ही उत्तराखण्ड के शहीदों के प्रति यह सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने कहा कि गढ़वाली भाषा को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के गढ़वाली भाषा एवं संस्कृति विभाग ने गढ़वाली भाषा क्विज शुरू की है। विभाग की ओर से कहा गया है कि ऑनलाइन क्विज में 50 प्रतिशत अंक से अधिक लाने वालों को उनकी मेल पर ऑनलाइन प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे।
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि वह सदैव से ही भाषा एवं संस्कृति को लेकर सजग रहे हैं। आगे भी मातृभाषा की गायन के माध्यम से सेवा करते रहेंगे।


डॉ. राजेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि गढ़वाली भाषा के प्रति जन अभिरूचि तभी पनप सकती है जब इसे प्रतियोगी परीक्षाओं में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। अगर प्रदेश सरकार गढ़वाली भाषा के विकास के लिए हाथ बढ़ाती है तो इसका स्वागत होना चाहिए। गणेश खुगशाल “गणी” ने कहा कि स्कूलों में भी गढ़वाली भाषा को शीघ्र लागू करना चाहिए। डॉ. संजय पोखरियाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमें अपनी भाषा के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए। डॉ. सुमंगल सिंह नेगी ने कहा भाषा में स्वीकार्यता भी होनी चाहिए। श्रीमती नीता कुकरेती ने कहा कि गढ़वाली भाषा का लंबा इतिहास है। इसमें कई भाषाओं के शब्द हैं और बहुत ही समृद्ध भाषा है। गढ़वाली भाषा तभी आगे बढ़ेगी जब सरकार इसमें रोजगार के अवसर प्रदान करेगी। डॉ. अनिल थपलियाल ने कहा कि विदेशों में जो लोग गढ़वाली पढ़ना चाहते हैं उनके लिए भी ऑनलाइन व्यवस्था होनी चाहिए। मौके पर सुश्री अंजली डबराल ने भी अपने विचार रखें।

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