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उत्तराखंड में यहां ग्रामिणों ने आखिर क्यों दी ढोल बाजे के साथ खेतों को विदाई, महिलाओं की छलके आंखे

उत्तराखंड के गोपेश्वर में सौकोट गांव के ये खेत इनसे पीढ़ियों से जुड़े हुए थे। इन खेतों का अन्न खाकर वे पले-बढ़े थे। इनकी माटी की खुशबू उनकी रग-रग में बसी थी। इनसे जुदाई की कभी कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन उनके गांव से रेल गुजरेगी। विकास की पटरी पर उनका गांव भी दौड़ेगा। यही सोचकर किसानों ने अपने खेत सरकार को सौंप दिए। ढोल-दमाऊं बज रहे थे। जागर गाती महिलाएं पानी से भरे खेतों में धान रोप रही थीं। आंखें पनीली थीं। इन खेतों में आखिरी बार की रोपाई को उन्होंने गम और खुशी का अनूठा उत्सव बना दिया।

धान की रोपाई को ग्रामीणों ने खास बनाया

गोपेश्वर से सैकोट गांव करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित है। रेलवे स्टेशन के लिए गांव की करीब 200 नाली भूमि अधिग्रहीत की गई है। गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं। ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है। यही कारण है कि इस गांव पर आज तक पलायन की छाया नहीं पड़ी। गांव में मकानों के आसपास ही दूर-दूर तक बड़े-बड़े खेत हैं। ग्रामीण बड़े उल्लास के साथ खेतों में धान की रोपाई करते हैं। इसकी तैयारी एक माह पहले से शुरू हो जाती है। महिलाएं मिलकर धान की बिज्वाड़ (धान के पौधे) की निराई-गुड़ाई करती हैं।

गुरुवार को रोपाई के दौरान खेतों से अलग होने का दुख आंसुओं के रूप में महिलाओं की आंखों से छलक रहा था। रोपाई के बीच जागर गाते-गाते महिलाएं रोने लगीं। इस वर्ष की धान की रोपाई को ग्रामीणों ने और खास बना दिया। अपने खेतों से अलग होने का दुख तो उनके दिलों में था, लेकिन वे इस पल को हमेशा के लिए यादगार बनाना चाहते थे। ग्रामीण बैलों के साथ ढोल-दमाऊं लेकर खेतों में पहुंचे।

सुबह खेतों में पानी लगाने के बाद महिलाओं ने जीतू बगड़वाल के जागरों के साथ धान की रोपाई की। अक्षत नाट्य संस्था के अध्यक्ष कमल किशोर डिमरी, विजय वशिष्ठ, हरीश सेमवाल, चंडी थपलियाल, ओम प्रकाश पुरोहित, उमेश चंद्र थपलियाल, विवेक नेगी आदि इस दौरान मौजूूद रहे।

 

 

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