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उत्तराखंड की अगलाड़ नदी में मनाये जाने वाला मौण मेला स्थगित

रिपोर्टर सुनील सोनकर

मसूरी के पास टिहरी जनपद के विकासखंड जौनपुर के अंतर्गत अगलाड़ नदी में हर साल जून महीनें में आयोजित होने वाला मौण मेला कोरोना महामारी के कारण स्थगित हो गया है व पिछले साल भी कोरोना को लेकर मौण मेले को स्थगीत किया गया था। बता दें कि मौण मेले का आयोजन हर साल जून के अंत में यमुना की सहायक नदी अगलाड़ के तट पर होता है, जिसमें जौनपुर, जौनसार, व रवाईं घाटी से हजारों की संख्या में लोग इस मेले में आकर प्रतिभाग कर ग्रामीण सामूहिक रूप से नदी में उतर कर मछलियां पकड़ते थे।।लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए और सावधानियों को मद्देनजर रखते हुए इस आयोजन को इस वर्ष भी स्थगित कर दिया गया है।

मौण मेला विकास समिति के अध्यक्ष महिपाल सिंह सजवाण ने बताया कि पिछले साल भी कोरोना महामारी के चलते मौण मेला स्थगित कर दिया गया था और इस वर्ष भी कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए समिति ने निर्णय लिया है कि इस वर्ष भी मेले का आयोजना नही किया जाए। उन्होंने बताया कि यह मौण मेला राजशाही के समय से चलता आ रहा है जिसको निरंतर ग्रामीणों ने इस परंपरा को आज तक भी बनाए रखा है। प्रतिवर्ष लगने वाला यह मेला सबसे पहले वर्ष 2013 की आपदा के समय भी नही किया गया था। दूसरी बार, गत वर्ष और अब लगातार दूसरे वर्ष भी कोरोना के चलते रद्द किया गया है। इतिहासकारों की मानें तो वर्ष 1911 में तत्कालीन टिहरी नरेश द्वारा अगलाड़ नदी के मौणकोट नामक स्थान पर यह मेला शुरू किया गया था और तब से यह एक परंपरा बन चुकी है जिसे हर साल स्थानीय लोगों द्वारा त्यौहार की तरह मनाया जाता है।


मानसून की शुरूआत में अगलाड़ नदी में जून के अंतिम सप्ताह में मछली मारने का सामूहिक मौण मेला मनाया जाता है।क्षेत्र के हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और बुजुर्ग नदी की धारा के साथ मछलियां पकड़ने उतरते हैं। खास बात यह है कि इस मेले में पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है। इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं, जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं, वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं।

जल वैज्ञानिकों के राय
जल वैज्ञानिकों का कहना है कि टिमरू का पावडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है, मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती है और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। वहीं हजारों की सं या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमा काई और गंदगी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला होने के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है।
मौण मेला का महत्व
बता दें कि इस ऐतिहासिक मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था। तब से जौनपुर में निरंतर इस मेले का आयोजन किया जा रहा है। मौण मेला राजा के शासन काल से मनाया जाता है और क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहा करते थे। मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे। लेकिन सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा स्वयं ग्रामीण उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं

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