
आपदा में दिखी नेतृत्व के फर्क की बानगी: प्रभावित क्षेत्र में डटे मुख्यमंत्री, आला अफसरों का आपदास्थल पर डेरा, दुरुस्त और संवेदनशील सिस्टम
एक वक्त वो था जब केदारनाथ आपदा में दो दिन तक सरकार को जल प्रलय की खबर तक नहीं थी, पर अब वक्त बदला और सिस्टम भी। हिमस्खलन से नंदादेवी बायोस्फियर क्षेत्र में आई आपदा में इसकी बानगी देखने को मिली है। केदारघाटी के प्रलयकारी हादसे से सबके लेते हुए बीते 8 सालों में राज्य के आपदा प्रबंधन तंत्र को काफी हद तक दुरुस्त कर लिया गया है। राहत और बचाव के लिए रिस्पॉस टाइम में सुधार हुआ है। सिस्टम में संवेदनशीलता भी बढ़ी है। खासतौर पर मुखिया को राहत के मोर्चे पर डटे देखना एक सुखद अहसास है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2013 में केदारनाथ में आई प्राकृतिक आपदा के प्रभावों से निपटने के लिए अगर उत्तराखंड सरकार की तैयारियां पुख्ता होती और राहत व बचाव अभियान वक्त रहते हो पाता, तो इस आपदा में कई और जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। उस वक्त कांग्रेस सरकार पर आपदा से प्रभावी रूप स...