बोल पहाड़ी बोल : राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय का दम्भ भरने वाले पीठ दिखा भागे पहाड़ से : अजय रावत
■राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय का दम्भ भरने वाले पीठ दिखा भागे पहाड़ से■
सुना है 'जन सरोकारों' का मुलम्मा चढ़ाकर 'खबरें' बेचने वाली कम्पनियों के लाला, जो राष्ट्रीय होने का दम्भ भर सीना फुलाते न थकते हैं, पहाड़ में उनका दम फूलने लगा है। एक-एक कर अपनी 'फ्रैंचाईजी' को बन्द करने का सिलसिला शुरू कर चुके हैं।
सबसे पहले बात करें, उस 'ब्रैंड' की, जिसके बाबत कहा जाता था कि पहाड़ियों में '27 नम्बर' बीड़ी और 'अमर उजाला' का स्वाद लत की तरह शामिल है, सौभाग्य/दुर्भाग्य से मैंने भी पत्रकारिता की शुरुआत इसी ब्रैंड से की। लेकिन लाला जी की नई और बेहद प्रॉफेसनल पीढ़ी ने फ़ैसला किया है कि पहाड़ से पैसा तो बिना फ्रेंचाइजी के भी कमाया जा सकता है। सो सारे ऑफिस बन्द कर 'मनरेगोत्तर' दिहाड़ी वाले 'पतरकारों' को सड़क पर ला खड़ा कर दिया।
आजादी से पहले के प्रतिष्ठित अखबार 'हिंदुस्तान' ने भी न केवल गुप् चुप तरीके से पहाड़ की...