Tuesday, February 11News That Matters

चमोली में फरवरी में क्यों आई थी बाढ़?.. तपोवन विष्णुगाड तक 50 मिनट में कैसे पहुंचा जलप्रलय….. वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में फरवरी में जो भीषण बाढ़ आई थी, उसके कारण का खुलासा भारतीय जिओलॉजिकल सर्वे ने अपनी रिपोर्ट में कर दिया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक रौंठी गाद की बाईं घाटी में चट्टान और बर्फ का एक भारी टुकड़ा टूटकर ऋषिगंगा वैली में गिरा था, जिसके कारण ऋषिगंगा नदी में भीषण बाढ़ की स्थिति बनी थी. दर्जनों जानें लेने वाली इस बाढ़ के कारण रैनी के पास ऋषिगंगा हाइडेल प्रोजेक्ट सहित एनटीपीसी के निर्माणाधीन तपोवन विष्णुगढ़ हाइडेल प्रोजेक्ट को भी भारी नुकसान हुआ था

जीएसआई के जीएचआरएम केंद्र के निदेशक सैबाल घोष के मुताबिक भारी हिमस्खलन के चलते यह घटना हुई थी. इस स्खलन के दौरान करीब 400m x 700m x 150m आकार के बर्फीले चट्टानी हिस्से ऋषिगंगा नदी की सहायक नदी रौंठी गाद में जा गिरे थे. घोष के हवाले से पीटीआई ने रिपोर्ट किया कि इतने बड़े टुकड़े के बहुत ऊंचाई से नदी में जा गिरने की रफ्तार इतनी थी कि बेतहाशा ऊर्जा पैदा हुई. इसके पिघलने से जलस्तर तेज़ी से बढ़ा था.

घोष ने यह भी कहा कि 7 फरवरी को बाढ़ से पहले 4 से 6 फरवरी के दौरान मौसम विज्ञानी स्थितियों में कुछ बदलाव भी देखे गए थे. जीएसआई की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि पिछले छह दशकों के रिकॉर्ड में 2021 में ही जनवरी का महीना सबसे ज़्यादा गर्म रहा था. हालांकि बाढ़ से जोशीमठ की तरफ ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन रुद्रप्रयाग ज़िले में तबाही के मंज़र दिखे थे. इस घटना में 72 से ज़्यादा मौतें हुई थीं और कई अब भी लापता हैं

बाढ़ की इस त्रासदी के फौरन बाद जीएसआई ने विशेषज्ञों की एक टीम बनाकर इस आपदा के कारणों की पड़ताल शुरू की थी. बता दें कि जिओलॉजिकल सर्वे भारत की 171 साल पुरानी भू विज्ञान संबंधी संस्था है. अब जीएसआई की रिपोर्ट में एक बर्फीली चट्टान के टूटकर गिरने की थ्योरी को बाढ़ का कारण बताया गया है. पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालयीन भूविज्ञान के वाडिया इंस्टिट्यूट के अध्ययन में भी इसी तरह की बात इंगित की गई थी.

यह भी गौरतलब है कि इसरो के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र के एक अध्ययन में कहा गया था कि हिमस्लखन होने और जोशीमठ के पास तपोवन में बांध के पास तबाही होने के बीच में समय बहुत कम था. स्टडी के मुताबिक मुश्किल से 50 मिनट इस घटना में लगे थे, जो कि किसी तरह की चेतावनी जारी करने और आपात कदम उठाए जाने के लिहाज़ से पर्याप्त नहीं थे

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